Sunday, 27 April 2014

तेरा हिज्र मेरा नसीब है तेरा ग़म ही मेरी हयात है / निदा फ़ाज़ली

तेरा हिज्र मेरा नसीब है तेरा ग़म ही मेरी हयात है
मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यों तू कहीं भी हो मेरे साथ है

मेरे वास्ते तेरे नाम पर कोई हर्फ़ आये नहीं नहीं
मुझे ख़ौफ़-ए-दुनिया नहीं मगर मेरे रू-ब-रू तेरी ज़ात है

तेरा वस्ल ऐ मेरी दिलरुबा नहीं मेरी किस्मत तो क्या हुआ
मेरी महजबीं यही कम है क्या तेरी हसरतों का तो साथ है

तेरा इश्क़ मुझ पे है मेहरबाँ मेरे दिल को हासिल है दो जहाँ
मेरी जान-ए-जाँ इसी बात पर मेरी जान जाये तो बात है
[photo courtesy google]