Thursday, 18 December 2014

उलझन

एक पशेमानी रहती है ….उलझन और गिरानी भी...
आओ फिर से लड़कर देंखें ,
शायद इससे बेहतर कोई ,
और सबब मिल जाए हमको ...फिर से अलग हो जाने का !!

~*~गुलज़ार साहिब~*~