Tuesday, 10 June 2014

एक पुराना ख़त....गुलज़ार साहिब


खुशबू  जैसे लोग मिले अफ़साने में
इक पुराना ख़त खोला अनजाने में !

शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगादी आने में !

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता हूं वीराने में !

जाने किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़ा लेता है जो दोहराने में !!