हल्की हल्की आहें भरना
तकिये में सर दे के धीमे धीमे
सरगोशी में बातें करना
पागलपन है ऐसे तुमपे मरना
उबला उबला क्यूँ लगता है
ये बदन ये जलन तो
खामखाँ नहीं खामखाँ नहीं
जो नहीं किया कर के देखना
सांस रोक के मर के देखना
ये बेवजह बेसबब
सब खामखाँ नहीं...
[गुलज़ार साहिब]