Friday, 25 July 2014

वो शाम कुछ अजीब थी

वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है
वो कल भी पास पास थी, वो आज भी करीब है

झुकी हुयी निगाहों में, कही मेरा ख़याल था
दबी दबी हंसी में, एक हसीं सा गुलाल था
मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही हैं वो
न जाने क्यों लगा मुझे के मुस्कुरा रही हैं वो

मेरा ख़याल है, अभी झुकी हुयी निगाहों में
खिली हुयी हँसी भी है, दबी हुयी सी चाह में
मैं जानता हूँ, मेरा नाम गुनगुना रही हैं वो
यही ख़याल हैं मुझे के साथ आ रही हैं