Tuesday 17 June 2014

दुनिया के सितम याद ना .... जिगर मुरादाबादी


दुनिया के सितम याद ना अपनी हि वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मुहब्बत के सिवा याद

मैं शिक्वाबलब था मुझे ये भी न रहा याद
शायद के मेरे भूलनेवाले ने किया याद

जब कोई हसीं होता है सर्गर्म-ए-नवाज़िश
उस वक़्त वो कुछ और भी आते हैं सिवा याद

मुद्दत हुई इक हादसा-ए-इश्क़ को लेकिन
अब तक है तेरे दिल के धड़कने की सदा याद

हाँ हाँ तुझे क्या काम मेरे शिद्दत-ए-ग़म से
हाँ हाँ नहीं मुझ को तेरे दामन की हवा याद

मैं तर्क-ए-रह-ओ-रस्म-ए-जुनूँ कर ही चुका था
क्यूँ आ गई ऐसे में तेरी लगज़िश-ए-पा याद

क्या लुत्फ़ कि मैं अपना पता आप बताऊँ
कीजे कोई भूली हुई ख़ास अपनी अदा याद

http://youtu.be/UnKoQ0A9E1Y

इंतज़ार

इंतज़ार ...
========
रातभर दीदा-ए-नमनाक में लहराते रहे
साँस की तरह से आप आते रहे जाते रहे ।

ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा
अपना अरमान बर अफ़गंदा नक़ाब आएगा ।

नज़रें नीची किए शरमाए हुए आएगा
काकुले चेहरे पे बिखराए हुए आएगा ।

आ गई थी दिले मुज़तर में शकेबाई -सी
बज रही थी मेरे ग़मख़ाने में शहनाई-सी ।

पत्तियाँ खड़कीं तो समझा के लो आप आ ही गए
सजदे मसरूर के मसजूद को हम पा ही गए ।

शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
आपके आने की एक आस थी अब जाने लगी ।

सुबह के सेज से उठते हुए ली अँगड़ाई
ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई ।

मेरे महबूब मेरी नींद उड़ाने वाले
मेरे मसजूद मेरी रूह पे छाने वाले ।

आ भी जा ताके मेरे सजदों का अरमाँ निकले
आ भी जा, ताके तेरे क़दमों पे मेरी जाँ निकले ।

~मख़दूम मोहिउद्दीन ~
[मख़दूम मोहिउद्दीन की गज़ल की किताब सुर्ख सवेरा से ]

नमनाक=moist damp ; बरफ्गंदा =without covering/unveiled; काकुलें =curls of hair; मुज़्तर =restless; शकेबाई =patience;मसरूर =happy delighted ;मस्जूद = object of worship ; सबा =breeze ये दुरदर्शन पे अली सरदार जाफरी द्वारा निर्मित 'शायरों पर केंद्रित' धारावाहिक 'कहकशां' का एक हिस्‍सा थी ।इस ग़ज़ल को जगजीत सिंह और आशा भोसले ने गाया है ।

http://youtu.be/_ctJSNjpt9U

Saturday 14 June 2014

£ov€ of the $ou£$

Apart from Love, everything passes away.
The way to heaven is in your heart.
Open and lift the wings of Love!
When Love’s wings are strong, you need no ladder.
Though the world be thorns, a lover’s heart is a bower of roses.
Though heaven’s wheel be mired down, lovers’ lives go forward.
Invite love into each dark corner.
The lover is bright as a hundred thousand candles!
Even if a lover seems to be alone, the secret Beloved is nearby.
The time-span of union is eternity.
The life is a jar, and in it, union is the pure wine.
If we aren’t together, of what use is the jar?
The moment I heard my first love story I began seeking you,
not realising the search was useless.
Lovers don’t finally meet somewhere;
they are in one another’s souls all along.

[by Rumi]

Rumi....on £ove of the $ou£$

Apart from Love, everything passes away.
The way to heaven is in your heart.
Open and lift the wings of Love!
When Love’s wings are strong, you need no ladder.
Though the world be thorns, a lover’s heart is a bower of roses.
Though heaven’s wheel be mired down, lovers’ lives go forward.
Invite love into each dark corner.
The lover is bright as a hundred thousand candles!
Even if a lover seems to be alone, the secret Beloved is nearby.
The time-span of union is eternity.
The life is a jar, and in it, union is the pure wine.
If we aren’t together, of what use is the jar?
The moment I heard my first love story I began seeking you,
not realising the search was useless.
Lovers don’t finally meet somewhere;
they are in one another’s souls all along.

Thursday 12 June 2014

Quoted.... quote...


It's really a wonder that I haven't dropped all my ideals, because they seem so absurd and impossible to carry out. Yet I keep them, because in spite of everything, I still believe that people are really good at heart

Tuesday 10 June 2014

कैसे बताऊँ तुम मेरे कोन हो....

गुनगुना रही हूँ जिन्हें...ये और बहुत सारे वोह लम्हे हैं जो कभी तुमने मेरे लिए दिन रात गुनगुनाये थे....द इनोसेंट inticement bait...एक अनकही कहानी हो, एक अधूरी दास्ताँ हो...तुम्हे छोड़ के मेरा अलायादा होना...शायद ठीक था...या शायद नहीं....नहीं जानती....शायद झूठ और फरेब तुम्हारा मुझे जाएदा ही थक्का रहा था....अकेली हूँ पर पर -सकून हूँ...अधूरी ही सही पर जाएदा मज़बूत हूँ...खुद के जाएदा करीब हूँ....इसी तरह की छोटी छोटी सी बातें मुझे तुम से जोड़े रखती हैं...दूर नहीं लगते तुम...अलग अलग रहते हुए मुक्कमल मोहबत निभाना ये भी सीख रही हूँ....तुम्हारे बाद भी बस तुम्हारे साथ जीना.....ऐसा भी रिश्ता होता है....हैरत होती है....खुद पर कभी कभी....
♪°°°°°♪°°°°°°°°°°♪°°°°♪
कैसे बताऊं मैं तुम्हें मेरे लिए तुम कौन हो कैसे बताऊं
कैसे बताऊं मैं तुम धड़कनों का गीत हो जीवन का तुम संगीत हो

तुम ज़िंदगी तुम बंदगी तुम रोशनी तुम ताज़गी
तुम हर खुशी तुम प्यार हो तुम प्रीत हो मनमीत हो
आँखों में तुम यादों में तुम साँसों में तुम आहों में तुम
नींदों में तुम ख्वाबों में तुम
तुम हो मेरी हर बात में तुम हो मेरे दिन रात में
तुम सुबह में तुम शाम में तुम सोच में तुम काम में
मेरे लिए पाना भी तुम मेरे लिए खोना भी तुम
मेरे लिए हँसना भी तुम मेरे लिए रोना भी तुम
और जागना सोना भी तुम
जाऊं कहीं देखूं कहीं तुम हो वहां तुम हो वहीं
कैसे बताऊं मैं ...

ये जो तुम्हारा रूप है ये ज़िंदगी की धूप है
चन्दन से तरशा है बदन बहती है जिसमें इक अगन
ये शोखियां ये मस्तियां तुमको हवाओं से मिलीं
ज़ुल्फ़ें घटाओं से मिलीं
होंठों में कलियां खिल गईं आँखों को झीलें मिल गईं
चेहरे में सिमटी चाँदनी आवाज़ में है रागिनी
शीशे के जैसा अंग है फूलों के जैसा रंग है
नदियों के जैसी चाल है क्या हुस्न है क्या हाल है
ये जिस्म की रंगीनियां जैसे हज़ारों तितलियां
बाहों की ये गोलाइयां आँचल में ये परछाइयाँ
ये नगरिया है ख्वाब की
कैसे बताऊं मैं तुम्हें हालत दिल\-ए\-बेताब की
कैसे बताऊं मैं ...

कैसे बताऊं मैं तुम्हें मेरे लिए तुम धर्म हो
मेरे लिए ईमान हो तुम्हीं इबादत हो मेरी
तुम्हीं तो चाहत हो मेरी तुम्हीं मेरा अरमान हो
तकता हूँ मैं हर पल जिसे तुम्हीं तो वो तस्वीर हो
तुम्हीं मेरी तक़दीर हो
तुम्हीं सितारा हो मेरा तुम्हीं नज़ारा हो मेरा
यूं ध्यान में मेरे हो तुम जैसे मुझे घेरे हो तुम
पूरब में तुम पश्चिम में तुम उत्तर में तुम दक्षिण में तुम
सारे मेरे जीवन में तुम हर पल में तुम हर क्षण में तुम
मेरे लिए रस्ता भी तुम मेरे लिए मंज़िल भी तुम
मेरे लिए सागर भी तुम मेरे लिए साहिल भी तुम
मैं देखता बस तुमको हूँ मैं सोचता बस तुमको हूँ
मैं जानता बस तुमको हूँ मैं मानता बस तुमको हूँ
तुम्हीं मेरी पहचान हो
कैसे बनाऊं मैं तुम्हें देवी हो तुम मेरे लिए
मेरे लिए भगवान हो
कैसे बताऊं मैं ...

माया...मेमसाहिब....

पाँव के तले कभी, दिल पड़ा मिले अगर.....
चूम कर उठाईये,
खूब देखभाल कर,
जो कोई पूछ ले तो क्या,
राह से उठाया हैं.....

एक पुराना ख़त....गुलज़ार साहिब


खुशबू  जैसे लोग मिले अफ़साने में
इक पुराना ख़त खोला अनजाने में !

शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगादी आने में !

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता हूं वीराने में !

जाने किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़ा लेता है जो दोहराने में !!

आखरी गिरह....गुलज़ार साहिब

तुम्हारे ग़म की डली उठाकर
जुबां पर रख ली है देखो मैंने
ये  कतरा-कतरा पिघल रही है
मैं कतरा कतरा ही जी रहा हूँ

पिघल पिघलकर गले से उतरेगी
आखरी बूँद दर्द की जब
मैं साँस आखरी गिरह को भी खोल दूँगा

Friday 6 June 2014

Golden £otus

“Even amidst fierce flames, the golden lotus can be planted”

These are words from the 16th century Buddhist novel “Journey to the West” by Wu Ch’eng-En.This is also the inscription engraved on the gravestone of  moi favorite poet, Sylvia Plath.
The quote sums up about the life ,as it gives a comforting hope that after all We have all survived our raging storms…even from the darkest and most destructive places and situations, Beautiful £ife transforming,  and wonderful things can happen.This is a Profound £ife lesson to remember and embrace...

Monday 2 June 2014

तुम्हे छोड़ के अब जीने को जी तो नहीं...

तुम्हे छोड़ के अब जीने को जी तो नहीं,
तुम्हे छोड़ के मर जाने को जी करता है.
तुम्हारे बिना जीना- मरना क्या.
तुम्हे छोड़ के अब जीने को जी तो नहीं...

तेरे प्यार में दिल जला तो जला,
तेरी सांस से जिस्म भी जल गया,
तेरे प्यार में जल के बुझना क्या.
तुम्हे छोड़ के यूँ अब जीने को जी तो नहीं...

ज़मीं पे नहीं हम, पुकारो हमें,
चाँद हो गए हैं उतारो हमें,
तुम जो नहीं, चाँद पे बसना क्या.
तुम्हे छोड़ के अब जीने को जी तो नहीं...

आँखों ने कही और ज़ुबां हो गई, इतनी सी क़सम दास्ताँ हो गई,
आँखों ने कही और ज़ुबां हो गई, छोटी सी क़सम दास्ताँ हो गई,
कहते हुए दास्ताँ रुकना क्या.
तुम्हे छोड़ के अब जीने को जी तो नहीं...

तुम्हे छोड़ के मर जाने को जी करता है.
तुम्हारे बिना जीना- मरना क्या...
तुम्हे छोड़ के अब जीने को जी तो नहीं......

जब तुम करीब थे....

तुमसे मिला था प्यार, कुछ अच्छे नसीब थे,
हम उन दिनों अमीर थे, जब तुम क़रीब थे....

सोचा था मय है ज़िन्दगी, और ज़िन्दगी की मैं,
प्याला हटा के तेरी हथेली से पियेंगे,
वो ख्वाहिशें अजीब थी, सपने अजीब थे..
तुमसे मिला था प्यार, कुछ अच्छे नसीब थे,
हम उन दिनों अमीर थे, जब तुम क़रीब थे....

पूछेंगे एक बार कभी हम तुमसे रूठकर,
हम मर गए अगर तो आप कैसे जियेंगे,
वो ख्वाहिशें अजीब थी, सपने अजीब थे,
जीने को तेरी प्यार की दौलत मिली तो थी,
जब तुम नहीं थे उन दिनों, हम भी गरीब थे..

तुमसे मिला था प्यार, कुछ अच्छे नसीब थे,
हम उन दिनों अमीर थे, जब तुम क़रीब थे.......
[गुलज़ार साहिब]

बस.....गुलज़ार साहिब

ऎसा कोई ज़िन्दगी से वादा तो नहीं था,
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं था...

तेरे लिए रातों में चांदनी उगाई थी,
क्यारियों में ख़ुशबू की रौशनी लगाई थी,
जाने कहाँ टूटी है डोर मेरे ख्वाब की,
ख्वाब से जागेंगे सोचा तो नहीं था...
ऎसा कोई ज़िन्दगी से वादा तो नहीं था,
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं था...

शामियाने शामों के रोज़ ही सजाये थे,
कितनी उम्मीदों के मेहमां बुलाये थे,
आके दरवाज़े से लौट गए हो,
यूँ भी कोई आएगा सोचा तो नहीं था...
ऎसा कोई ज़िन्दगी से वादा तो नहीं था,
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं था.....

बस.....गुलज़ार साहिब

ऎसा कोई ज़िन्दगी से वादा तो नहीं था,
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं था...

तेरे लिए रातों में चांदनी उगाई थी,
क्यारियों में ख़ुशबू की रौशनी लगाई थी,
जाने कहाँ टूटी है डोर मेरे ख्वाब की,
ख्वाब से जागेंगे सोचा तो नहीं था...
ऎसा कोई ज़िन्दगी से वादा तो नहीं था,
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं था...

शामियाने शामों के रोज़ ही सजाये थे,
कितनी उम्मीदों के मेहमां बुलाये थे,
आके दरवाज़े से लौट गए हो,
यूँ भी कोई आएगा सोचा तो नहीं था...
ऎसा कोई ज़िन्दगी से वादा तो नहीं था,
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं था.....

ख़ुमार-ए-ग़म है

ख़ुमार-ए-ग़म है महकती फ़िज़ा में जीते हैं,
तेरे ख़याल की आब-ओ-हवा में जीते हैं....

बड़े इत्तफ़ाक़ से मिलते हैं, मिलने वाले मुझे,
वो मेरे दोस्त हैं, तेरी वफ़ा में जीते हैं....

फ़िराक़-ए-यार में साँसों को रोके रखते हैं,
हर एक लम्हा गुज़रती कज़ा में जीते हैं....

न बात पूरी हुई थी, के रात टूट गई,
अधूरे ख़्वाब की, आधी सज़ा में जीते हैं....

तुम्हारी बातों में कोई मसीहा बसता है,
हसीं लबों से बरसती शफ़ा में जीते हैं....

ख़ुमार-ए-ग़म है महकती फ़िज़ा में जीते हैं,
तेरे ख़याल की आब-ओ-हवा में जीते हैं....!!

मेरा जिस्म.....[गुलज़ार साहिब]

मुझे मेरा जिस्म छोड़कर बह गया नदीं में!
अब उस किनारे पहुंच के मुझको बुला रहा है
मैं इस किनारे पे डूबता जा रहा पैहम
मैं कैसे तैरूं बगैर उसके!!
मुझे मेरा जिस्म छोड़कर बह गया नदी में!!

एक ख्याल....

एक ख्याल फेंका है रफ़्तार-ए-बेपनाह से
ख़ुदा के पास जायेगा या उस पार,जो उसके पार गया तो मुझ तक वापस आएगा......

तन पे लगती काँच की बूँदे....

तन पे लगती काँच की बुँदे
मन पे लगे तो जाने
बर्फ से ठंडी आग की बुँदे
दर्द चुगे तो जाने

लाल सुनहरी चिंगारी सी
बेले झूलती रहती है
बहार गुलमोहर की लपटे
दिल में उगे तो जाने

बारिश लम्बे लम्बे हाथों से
जब आकर छूती है
ये लोबान सी सांसें
थोड़ी देर रुके तो जाने

जिसे तुम भटकना कहती हो न मानसी
मैं उसे और जानने की तलाश कहता हूँ
इक और जानने की तलाश
मैं इस जमी पे भटकता हूँ कितनी सदियों से
गिरा वक़्त से कट के लम्हा उसकी तरह
बदन मिला तो कली के लिए भटकता रहा
काँच की बूँदें
तन पे लगती
काँच की बूँदें मन पे लगे तो जाने
तन पे लगती काँच की बुँदे
मन पे लगे तो जाने...

[गुलज़ार साहिब]

£ife journey


Now, there's birth and there's death, But the space in between  Is where the journey takes place and you give it all meaning,You can either live to die or do something with your life. You only live once therefore, you should do the things you love and have no regrets.

For....All philosophy in this world is swinging in between birth and death.