Tuesday 17 June 2014

इंतज़ार

इंतज़ार ...
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रातभर दीदा-ए-नमनाक में लहराते रहे
साँस की तरह से आप आते रहे जाते रहे ।

ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा
अपना अरमान बर अफ़गंदा नक़ाब आएगा ।

नज़रें नीची किए शरमाए हुए आएगा
काकुले चेहरे पे बिखराए हुए आएगा ।

आ गई थी दिले मुज़तर में शकेबाई -सी
बज रही थी मेरे ग़मख़ाने में शहनाई-सी ।

पत्तियाँ खड़कीं तो समझा के लो आप आ ही गए
सजदे मसरूर के मसजूद को हम पा ही गए ।

शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
आपके आने की एक आस थी अब जाने लगी ।

सुबह के सेज से उठते हुए ली अँगड़ाई
ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई ।

मेरे महबूब मेरी नींद उड़ाने वाले
मेरे मसजूद मेरी रूह पे छाने वाले ।

आ भी जा ताके मेरे सजदों का अरमाँ निकले
आ भी जा, ताके तेरे क़दमों पे मेरी जाँ निकले ।

~मख़दूम मोहिउद्दीन ~
[मख़दूम मोहिउद्दीन की गज़ल की किताब सुर्ख सवेरा से ]

नमनाक=moist damp ; बरफ्गंदा =without covering/unveiled; काकुलें =curls of hair; मुज़्तर =restless; शकेबाई =patience;मसरूर =happy delighted ;मस्जूद = object of worship ; सबा =breeze ये दुरदर्शन पे अली सरदार जाफरी द्वारा निर्मित 'शायरों पर केंद्रित' धारावाहिक 'कहकशां' का एक हिस्‍सा थी ।इस ग़ज़ल को जगजीत सिंह और आशा भोसले ने गाया है ।

http://youtu.be/_ctJSNjpt9U