Thursday 24 July 2014

गुलज़ार!! बस नाम ही काफी है...

आप के बगैर भी हमें
मीठी लगे उदासियाँ
क्या ये आप का कमाल है
शायद आपको ख़बर नहीं
हिल रही है पांव की ज़मीन
क्या ये आप का ख्याल है
अजनबी शहर में ज़िन्दगी मिल गई
अजीब है ये ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी अजीब है
में समझा था करीब है ये औरों का नसीब है

बात है ये एक रात की
आप बादलों पे लेटे थे
वो याद है आपने बुलाया था
सर्दी लग रही थी आपको
पतली चांदनी लपेटे थे
और शौल में ख्वाब के सुलाया था
अजनबी ही सही साँस में सिल गई
अजीब है ये ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी अजीब है
मेरे नहीं ये ज़िन्दगी रकीब का नसीब है।

गुलज़ार साहिब