Thursday 24 July 2014

मैं इसलिए भी तेरे फ़न की क़द्र करता हूँ,तू झूठ बोल के आंसू निकाल लेता है...

हल्की हल्की आहें भरना
तकिये में सर दे के धीमे धीमे
सरगोशी में बातें करना
पागलपन है ऐसे तुमपे मरना
उबला उबला क्यूँ लगता है
ये बदन ये जलन तो
खामखाँ नहीं खामखाँ नहीं

जो नहीं किया कर के देखना
सांस रोक के मर के देखना
ये बेवजह बेसबब
सब खामखाँ नहीं...

[गुलज़ार साहिब]