Wednesday 23 July 2014

मैं और मेरी तन्हाई


मैं और मेरी तन्हाई अकसर ये बातें करते है ,
तुम होती तो कैसा होता ,तुम ये कहती तुम वो कहती,
तुम इस बात पे हैरान होती ,तुम उस बात पे कितना हंसतीं
तूम होती तो ऐसा होता ,तुम होती तो वैसा होता,
मै और मेरी तन्हाई अकसर ये बाते करते है।

ये रात है, ये तुम्हारी ये जुल्फ़े खुली हुई है ,
है चाँदनी ये तुम्हारी नजरों से ये मेरी रातें धुली हुई है।
ये चाँद है ये तुम्हारा कंगन ,सितारे है ये तुम्हारा आंचल,
हवा का झोंका है ये तुम्हारे बदन की खुशबु ,
ये पत्तियों की सरसराहट की तुमने कुछ कहा है,
ये सोचता हूँ मै कबसे गुमसुम , की जबकि
मुझको भी ये खबर है की तुम नहीं हो , कही नहीं हो ,
मगर ये दिल है की कह रहा की तुम यही हो यही कहीं हो।

मजबूर ये हालात इधर भी है उधर भी है ,
तन्हाई की एक रात इधर भी है उधर भी ,
कहने को बहुत कुछ है मगर किससे कहे हम ,
कब तक यु ही खामोश रहे और सहे हम
,दिल करता है की दुनिया की हर रस्म उठा दें,
दिवार जो हम दोनों में है आज गिरा दे ,
क्यों दिल में सुलगते रहें हम आज बता दें , हाँ हमे मोहब्बत है
मोहब्बत है मोहब्बत, अब दिल में यही बात इधर भी है उधर भी।

मै और मेरी तन्हाई अकसर ये बाते करते है तुम होती तो कैसा होता
तुम होती तो ऐसा होता तुम होती तो वैसा होता ,
मै और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है।