Wednesday 7 May 2014

एक था बचपन, एक था बचपन...गुलज़ार साहिब

एक था बचपन, एक था बचपन
छोटा सा, नन्हा सा बचपन, एक था बचपन
बचपन के एक बाबूजी थे, अच्छे सच्चे बाबूजी थे
दोनो का सुंदर था बंधन, एक था बचपन

टहनी पर चढ़के जब फूल बुलाते थे
हाथ उँचके तो टहनी तक ना जाते थे
बचपन के नन्हे दो हाथ उठाकर
वो फूलों से हाथ मिलाते थे
एक था बचपन, एक था बचपन

चलते चलते, चलते चलते
जाने कब इन राहों में
बाबूजी बस गये बचपन की बाहों में
मुट्ठी में बंद हैं वो सूखे फूल अभी
खुशबू हैं जीने की चाहों में
एक था बचपन, एक था बचपन

होंठों पर उनकी आवाज़ भी हैं
मेरे होंठों पर उनकी आवाज़ भी हैं
साँसों में सौंपा विश्वास भी हैं
जाने किस मोड़ पे कब मिल जायेंगे वो
पूछेंगे बचपन का एहसास भी हैं..