Wednesday 7 May 2014

तेरे उतारे हुए दिन

तेरे उतारे हुए दिन
टंगे हैं Lawn  में अब तक
न वो पुराने हुए हैं, न उनका रंग उतरा
कहीं से, कोई भी सीवन अभी नहीं उधड़ी है 
इलाइची के बहोत पास रखे पत्थर पर
ज़रा-सी जल्दी सरक आया करती है छाँव
ज़रा-सा और घना हो गया है वो पौधा
मैं थोड़ा थोड़ा वो गमला हटता रहता हूँ
फ़कीरा अब भी, वो ही मेरी Coffee  देता है
गिलहरियों को बुला कर खिलाता हूँ Biscuit
गिलहरियाँ मुझे शक की नज़र से देखती हैं
वो तेरी हाथों का मस, जानती होंगी
कभी कभी जब उतरती है झील शाम की छत से
थकी थकी सी, ज़रा देर Lawn  में रुक कर
सफ़ेद और गुलाबी मसुंदे के पौधे में ही घुलने लगती हैं
कि जैसे बर्फ़ का टुकड़ा पिघलता जाए Whisky  में
मैं इसकार और तिन्कार गले से उतार देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन पहन के अब भी मैं
तेरी महक में कई रोज़ काट देता हूँ

तेरे उतारे हुए दिन
टंगे हैं Lawn  में अब तक
न वो पुराने हुए हैं, न उनका रंग उतरा
कहीं से, कोई भी सीवन अभी नहीं उधड़ी