Wednesday, 7 May 2014

-फ़िराक- गुलज़ार साहिब

वो शब जिसको तुमने गले से लगाकर
मुकद्दस लबों की हसीं लोरियों में
सुलाया है सीने पे हर रोज
लंबी कहानी सुनाकर
वो शब्---
वो शब् जिसकी आदत बिगाड़ी थी तुमने
वोह शब् आज बिस्तर पे औंधी पड़ी रो रही है