Wednesday, 7 May 2014

अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ....गुलज़ार

अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ
वो जो बहते थे आबशार कहाँ

आँख के इक गाँव में, रात को ख्वाब आते थे
छूने से बहते थे, बोले तो कहते थे
उड़ते ख़्वाबों का ऐतबार कहाँ
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ

जिन दिनों आप थे, आँख में धूप थी
जिन दिनों आप रहते थे, आँख में धूप रहती थी
अब तो जाले ही जाले हैं, यह भी जाने ही वाले हैं
वो जो था दर्द का करार कहाँ
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ

अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ
वो जो बहते थे आबशार कहाँ........