Thursday, 29 May 2014

जाने क्यों....वीर ज़ारा

जाने क्यूँ, ख़्वाबों का मौसम है , और मै हूँ
मौसम है, और मैं हूँ
जाने क्यूँ, यादों की शबनम है , और मै हूँ
शबनम है, और मै हूँ

यादें लायी हैं, खुशियाँ भी, आंसू भी
जाने क्यूँ, इक ऐसा संगम है , और मैं हूँ 
संगम है और मै हूँ

बरसे जो रंग इतने सारे, रंगीन हुए सब नज़ारे
लेकिन मेरा दिल कहीं भी, लगता नहीं बिन तुम्हारे
तुमको , बस तुमको , दिल ढूंढे दिल मांगे
जाने क्यूँ, हर लम्हा ये सितम है, और मैं हूँ
ये सितम है, और मै हूँ
जाने क्यूँ, ख़्वाबों का मौसम है , और मै हूँ
मौसम है, और मै हूँ

ये वादी अब सो गयी है, कोहरे में ही खो गयी है
साड़ी फ़िज़ा सांस रोके, गुमसुम सी अब हो गयी है
सारी, दुनिया में, अब कोई नहीं जैसे
जाने क्यूँ, बस मेरा हमदम है, और मै हूँ 
हमदम है, और मै हूँ
जाने क्यूँ, यादों की शबनम है, और मै हूँ
शबनम है , और मै हूँ

यादें , लायी हैं, खुशियां भी , आंसू भी
जाने क्यूँ , इक ऐसा संगम है, और मै हूँ
संगम है , और मै हूँ