एक ही ख़्बाव ने सारी रात जगाया है,
मैंने हर करवट सोने की कोशिश की,
इक सितारा,जल्दी जल्दी डूब गया,
मैंने जब तारे गिनने की कोशिश की,
नाम मेरा था और पता अपने घर का,
उसने मुझको ख़त लिखने की कोशिश की,
इक धुँये का मरघोला सा निकला है,
मिट्टी में जब "दिल बोने"की कोशिश की ।
[गुलज़ार साहब ]