Wednesday, 7 May 2014

-इमेजेज़- गुलज़ार साहिब

मैं भी उस हाँल में बैठा था
जहां परदे पे इक फिल्म के किरदार,
ज़िंदा जावेद नज़र आते थे
उनकी हर बात बड़ी, सोच बड़ी, कर्म बड़े
उनका हर एक अमल
एक ताम्सिल थी सब देखने वालों के लिये
मैं अदाकार था उसमें
तुम अदाकारा थी
अपने महबूब का जब हाथ पकड कर तुमने
जिंदगी एक नज़र में भर के
उसके सीने पे बस इक आंसू से लिख कर दे दी

कितने सच्चे थे वो किरदार
जो परदे पर थे
कितने फर्जी थे वो दो,
हाँल में बैठे साए...