वक़्त के पहिये से बाँधी हुई मुजरिम रूहे
हर दफा पिसके ही उठती है ज़मीं से लेकिन
हर दफा लोटके आ जाती हैं पिसने के लिए
फिर कोई दायरा है खींच ही लाता है इन्हें
जिस्म पिसते भी है, कट जाते है, मिट जाते है
एक ये रूह है मिटती नही, कटती भी नहीं
प्यार भरे दो शर्मीले नैन जिनसे मिला मेरे दिल को चैन कोई जाने ना क्यूं मुझसे शर्माए कैसे मुझे तड़पाए दिल ये कहे गीत मैं तेरे गाऊँ तू ही सुने और मैं गाता जाऊं तू जो रहे साथ मेरे दुनिया को ठुकराऊं तेरा दिल बहलाऊँ रूप तेरा कलियों को शर्माये कैसे कोई अपने दिल को बचाये पास है तू फिर भी जानम कौन तुझे समझाये सावन बीता जाये डर है मुझे तुझसे बिछड़ ना जाऊं खो के तुझे मिलने की राह न पाऊँ ऐसा न हो जब भी तेरा नाम लबों पर लाऊँ मैं आंसूं बन जाऊं जिनसे मिला मेरे दिल को...