Wednesday, 7 May 2014

फिर तलब, है तलब...गुलज़ार साहिब

फिर तलब, है तलब...
बेसबब, है तलब
शाम होने लगी है, लाल होने लगी है

जब भी सिगरेट जलती है, मैं जलता हूं
आग पे पाँव पड़ता है, कमबख़्त धुएं में चलता हूं

"फिर किसी ने जलाई, एक दिया सलाई
आसमां जल उठा है, शाम ने राख उड़ायी