बहुत बरस पहले गुलज़ार ने मिर्ज़ा ग़ालिब पर एक सीरियल बनाया था, जिसमें नसीरूद्दीन शाह ने ग़ालिब का किरदार निभाया था । जिसमें गुलज़ार ने कॉमेन्ट्री की है
पहले जगजीत सिंह की आवाज़ में आता है ये शेर
हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि गालिब का है अंदाज़े बयां और ।।
फिर बांसुरी की विकल तान के बीच गुलज़ार हमें मिर्ज़ा ग़ालिब के घर की तरफ लिये चलते हैं ये बातें कहकर----
बल्लीमारान के मुहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियां
सामने टाल के नुक्कड़ पे बटेरों के
गुड़गुड़ाती हुई पान की पीकों में वो दाद वो वाह वाह
चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा से कुछ टाट के परदे
एक बकरी के मिमियाने की आवाज़
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अंधेरे, ऐसे दीवारों से मुंह जोड़के चलते हैं यहां
चूड़ीवालान के कटरे की बड़ी बी जैसे, अपनी बुझती हुई आंखों से दरवाज़े टटोलें
इसी बेनूर अंधेरी सी गली-क़ासिम से
एक तरतीब चराग़ों की शुरू होती है
एक क़ुराने सुख़न का सफा खुलता है
असद उल्ला ख़ां ग़ालिब का पता मिलता है
इसके बाद आती है जगजीत सिंह की आवाज़ । और जगजीत ने गाये हैं ग़ालिब के ये अनमोल शेर---
हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आंख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है ।।
चिपक रहा है बदन पे लहू से पैराहन
हमारी जेब को अब हाजत-ऐ-रफ़ू क्या है
जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है ।।
हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है ।।