Wednesday, 7 May 2014

जाने क्या सोचकर नहीं गुजरा एक पल रात भर नहीं गुजरा...गुलज़ार साहिब

जाने क्या सोचकर नहीं गुजरा
एक पल रात भर नहीं गुजरा

अपनी तनहाई का औरों से ना शिकवा करना
तुम अकेले ही नहीं हो सभी अकेले है
ये अकेला सफ़र नहीं गुजरा

दो घड़ी जीने की मोहलत तो मिली हैं सब को
तुम भी मिल जाओ घडी भर तो ये गम होता है
एक घड़ी का सफ़र नहीं गुजरा

जाने क्या सोचकर नहीं गुजरा
एक पल रात भर नहीं गुजरा.......