तुम्हारे गम की डली उठाकर,
जुबाँ पर रख ली है देखों मैंने
वो कतरा-कतरा पिघल रही है
मैं कतरा-कतरा ही जी रहा हूँ
पिघल-पिघलकर गले से उतरेगी आखिरी बूँद दर्द की जब
मैं साँस की आखिरी गिरह को भी खोल दूँगा:----
कि दर्द-ही-दर्द की
मुझे जिंदगी से बस इक दुआ मिली है...
Tumhare gam ki dali uthakar,
zubaa par rakh li hai dwkhon maine
wo katra-katra pighl rahi hai
main katra-katra hi ji raha hun
pighl-pighlkar gale se utregi aakhiri boond dard ki jab
main saans ki aakhiri Girah ko bhi khol dunga----
ki dard-hi-dard ki
mujhe jindagi se bus ik duaa mili hai....
-katra-katra-
Gulzar saab