Wednesday, 7 May 2014

-मरियम- गुलज़ार साहिब

रात में देखो झील का चेहरा
किस कदर पाक, पुरसुकूँ, गमगीं
कोई साया नहीं है पानी पर
कोई सिलवट नहीं है आँखों में
नींद आ जाये दर्द को जैसे
जैसे मरियम उदास बैठी हो

जैसे चेहरा हटाके चेहरे का
सिर्फ एहसास रख दिया हो वहाँ