Wednesday, 7 May 2014

ज़िद

उन्हें ये ज़िद थी के हम बुलाएं
हमें ये उम्मीद वो पुकारें
है नाम होठों पे अब भी लेकिन
आवाज़ में पड़ गयीं दरारें

-- गुलज़ार