Friday, 9 May 2014

आदर - इमरोज़ साहब की नज़म अमृता जी के लिए

आदर........

किताबें पढने से लिखना पढ़ना आ जाता है
ज़िन्दगी पढ़ने से जीना
और प्यार करने से प्यार करना ......

सिगलीगरों ने पढ़ाई तो कोई नहीं की
पर ज़िन्दगी से पढ़ लिया लगता है
सिगलीगरों की लड़की जवान होकर
जिसके साथ जी चाहे चल फ़िर सकती है
दोस्ती कर सकती है
और जब वह अपना मर्द चुन लेती है
एक दावत करती है अपना मर्द चुनने की खुशी में
अपने सारे दोस्तों को बुलाती है
और सबसे कहती है कि आज अपनी दोस्ती पूरी हो गई
और उसका मन चाहा सबसे हाथ मिलाता है
फ़िर सब मिलके दावत का जश्न करते हैं ......

कुछ दिनों से ये दावत और ये दिलेरी जीने की
मुझे बार बार याद आती रही है
जो पढ़े लिखों की ज़िन्दगी में अभी तक नहीं आई
मेरे एक दोस्त को ज़िन्दगी के आखिरी पहर में
मोहब्बत हो गई ...
एक सयानी और खूबसूरत औरत से
दोस्त आप भी बहुत सयाना है- अच्छा है
मोहब्बत होने के बाद वो अपने घर में अपना नहीं रहा
घर में होते हुए भी घर में नहीं हो पाता
अब वो घरवाला ही नहीं रहा
पत्नी के पास पति भी नहीं रहा
पत्नी तो एक तरह से छूट चुकी थी
पर संस्कार नहीं छूट रहे थे .....

पता नहीं वो
आप नहीं जा पा रहा था
या जाना नहीं चाह रहा था
या संस्कार नहीं छोड़े जा रहे थे
मोहब्बत दूर खड़ी रास्ता देख रही थी
उसका जो अभी जाने के लिए तैयार नहीं था ......

जब पत्नी को पति की मोहब्बत का पता चला
पत्नी पत्नी नहीं रही न ही कोई रिश्ता रिश्ता रहा

मोहब्बत ये इल्जाम कबूल नहीं करती
पूछा सिर्फ़ हाज़र को जा सकता है
गैर हाज़र पति को क्या पूछना ....?
वह चुपचाप हालात को देख रही है
और अपने अकेले हो जाने को मान कर
अपने आप के साथ जीना सोच रही है ......

मोहब्बत ये इल्जाम कबूल नहीं करती
कि वो घर तोड़ती है
वह तो घर बनाती है
ख्यालों से भी खूबसूरत घर .......

सच तो ये है मोहब्बत बगैर
घर बनता ही नहीं ......

पत्नी अब एक औरत है
अपने आप की आप जिम्मेदार और ख़ुदमुख्तियार
चुपचाप चारों तरफ़ देखती है
घर में बड़ा कुछ बिखरा हुआ नज़र आता है
कल के रिश्ते की बिखरी हुई मौजूदगी
और एक अजीब सी खामोशी भी
वह सब बिखरा हुआ बहा देती है
और चीजों को संवारती है सजाती है
और सिगलीगरों की तरह एक दावत देने की
तैयारी करती है .......

इस तैयारी में बीते दोस्त दिन भी जैसे
उसमें आ मिले हों
मर्द को विदा करने के लिए .....

वह जा रहे मर्द की मर्ज़ी का खाना बनाती है
उसके सामने बैठकर उसे खाना खिलाती है
वो आँखें होते हुए भी आँखें नहीं मिलाता
सयानप होते हुए भी कुछ नहीं बोलता
वो चुपचाप खाना खाता है ....

उसकी सारी हौंद चुप रह कर भी बोल रही है
कि वो मोहब्बत में है
यहाँ चुप रहना ही सयानप है
कोई सफाई देने की जरुरत ही नहीं
कारण की भी नहीं
मोहब्बत का कोई कारण नहीं होता ....

जाते वक्त औरत
पैरों को हाथ लगाने की बजाये
मर्द से पहली बार हाथ मिलाती है
और कहती है- पीछे मुड़कर न देखना
आपकी ज़िन्दगी आपके सामने है
और 'आज ' में है
अपने आज का ख्याल रखना
मेरे फ़िक्र अब मेरे हैं
और मैं अपना ख्याल रख सकती हूँ .....

जो कभी नहीं हुआ वह आज हो रहा है
पर आज ने रोज़ आना है
ज़िन्दगी को आदर के साथ जीने के लिए भी
आदर के साथ विदा करने के लिए भी
और आदर से विदा होने के लिए भी .......!!

..... इमरोज़..