जी में आता है कि इस कान में सूराख करूँ
खीचकर दूसरी जानिब से निकालूँ उसको
सारी की सारी निचोड़ूँ ये रंगे साफ़ करूँ
भर दूँ रेशम की जलाई हुई भुक्की इनमें
कहकहाती हुई इस भीड़ में शामिल होकर
मैं भी इक बार हँसू, खूब हँसू, खूब हँसू.....
प्यार भरे दो शर्मीले नैन जिनसे मिला मेरे दिल को चैन कोई जाने ना क्यूं मुझसे शर्माए कैसे मुझे तड़पाए दिल ये कहे गीत मैं तेरे गाऊँ तू ही सुने और मैं गाता जाऊं तू जो रहे साथ मेरे दुनिया को ठुकराऊं तेरा दिल बहलाऊँ रूप तेरा कलियों को शर्माये कैसे कोई अपने दिल को बचाये पास है तू फिर भी जानम कौन तुझे समझाये सावन बीता जाये डर है मुझे तुझसे बिछड़ ना जाऊं खो के तुझे मिलने की राह न पाऊँ ऐसा न हो जब भी तेरा नाम लबों पर लाऊँ मैं आंसूं बन जाऊं जिनसे मिला मेरे दिल को...