शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं थमकर
इस की आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है
प्यार भरे दो शर्मीले नैन जिनसे मिला मेरे दिल को चैन कोई जाने ना क्यूं मुझसे शर्माए कैसे मुझे तड़पाए दिल ये कहे गीत मैं तेरे गाऊँ तू ही सुने और मैं गाता जाऊं तू जो रहे साथ मेरे दुनिया को ठुकराऊं तेरा दिल बहलाऊँ रूप तेरा कलियों को शर्माये कैसे कोई अपने दिल को बचाये पास है तू फिर भी जानम कौन तुझे समझाये सावन बीता जाये डर है मुझे तुझसे बिछड़ ना जाऊं खो के तुझे मिलने की राह न पाऊँ ऐसा न हो जब भी तेरा नाम लबों पर लाऊँ मैं आंसूं बन जाऊं जिनसे मिला मेरे दिल को...