Wednesday, 7 May 2014

यारम ...गुलज़ार साहिब

हम चीज़ हैं बड़े काम की, यारम
हमें काम पे रख लो कभी, यारम
हम चीज़ हैं बड़े काम की, यारम

हो सूरज से पहले जगायेंगे
और अखबार की सब सुर्खियाँ हम
गुनगुनाएँगे
पेश करेंगे गरम चाय फिर
कोई खबर आई न पसंद तो एंड बदल देंगे

हो मुंह खुली जम्हाई पर
हम बजाएं चुटकियाँ
धूप न तुमको लगे
खोल देंगे छतरियां
पीछे पीछे दिन भर
घर दफ्तर में लेके चलेंगे हम

तुम्हारी फाइलें, तुम्हारी डायरी
गाडी की चाबियां, तुम्हारी ऐनकें
तुम्हारा लैपटॉप, तुम्हारी कैप
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल
और अपना दिल, कुंवारा दिल
प्यार में हारा, बेचारा दिल

यह कहने में कुछ रिस्क है, यारम
नाराज़ न हो, इश्क है, यारम

हो रात सवेरे, शाम या दोपहरी
बंद आँखों में लेके तुम्हें ऊंघा करेंगे हम
तकिये चादर महके रहते हैं
जो तुम गए
तुम्हारी खुशबू सूंघा करेंगे हम
ज़ुल्फ़ में फँसी हुई खोल देंगे बालियाँ
कान खिंच जाए अगर
खा लें मीठी गालियाँ
चुनते चलें पैरों के निशाँ
कि उन पर और न पाँव पड़ें

तुम्हारी धडकनें, तुम्हारा दिल सुनें
तुम्हारी सांस सुनें, लगी कंपकंपी
न गजरे बुनें, जूही मोगरा तो कभी दिल
हमारा दिल, प्यार में हारा, बेचारा दिल
हमारा दिल, हमारा दिल
प्यारा में हारा, बेचारा दिल